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जो व्यक्ति मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप से कह नहीं सकता, उसी को क्रोध अधिक आता हैं…
यदि सामने वाल गुस्से में हैं, तो आप चुप रहिए…वह थोड़ी देर बाद ख़ुद चुप हो जाएगा…
क्रोध से भ्रम पैदा होता हैं, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती हैं… जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता हैं… जब तर्क नष्ट होता हैं तब व्यक्ति का पतन हो जाता हैं…
गुस्से में बोला गया एक कठोर शब्द इतना जहरीला बन सकता हैं कि आपकी हजार प्यारी बातों को एक मिनट में नष्ट कर सकता हैं…
क्रोध मनुष्य के पतन का रास्ता है जो वो स्वयं निर्मित करता हैं…
यदि आप सही हैं तो आपको गुस्सा होने की जरूरत नहीं हैं और यदि आप गलत हैं तो आपको गुस्सा होने का कोई हक़ नही हैं…
क्रोध एक स्थिति हैं, जिसमें जीभ मन से अधिक तेजी से काम करती हैं…
क्रोध पर काबू पाने के लिए सदैव उसे फल के विषय में चिन्तन करना चाहिए…
मौन रहना ही क्रोध को वश में करने का सबसे सटीक उपाय हैं…
क्रोध एक ऐसा श्राप हैं जो मनुष्य खुद को देता हैं…
क्रोध के वशीभूत होकर लिए गये फैसले मूर्खता का प्रमाण देते हैं…
क्रोध वह तूफ़ान हैं जो ज्ञान के दीपक को बुझा देता हैं…