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विषहीन सर्प को भी अपनी रक्षा के लिए फन फैलाना पड़ता है. (इसलिए शक्तिशाली न होते हुए भी शक्तिशाली होने का दिखावा करना आपकी रक्षा करता है.)
दुष्टों से दुष्टता करने में कोई दोष नहीं है.
दान से ही हाथों कि सुन्दरता है न कि कंगन पहनने से. शरीर स्नान से शुद्ध होता है न कि चन्दन लगाने से. तृप्ति मान से होती है न कि भोजन से. मोक्ष ज्ञान से मिलता है न कि श्रृंगार से|
जिस प्रकार घिसने, तापने, काटने और पीटने से सोने का परीक्षण होता है. उसी प्रकार त्याग, शील, गुण, एवं कर्मों से पुरुष कि परीक्षा होती है.
सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब न करें।
चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।
पहले निश्चय करिएँ, फिर कार्य आरम्भ करें।