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सिंह से हमें ये सीखना चाहिए कि काम छोटा हो या बड़ा पूरी शक्ति से करे. जिस प्रकार सिंह शिकार छोटा हो या बड़ा वह अपनी पूरी शक्ति से झपटता है.
नीम कि जड़ में मीठा दूध डालने से नीम मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार कितना भी समझाओ, दुर्जन व्यक्ति का साधु बनना मुश्किल है.
ब्राह्मण, गुरु, अग्नि, कुंवारी कन्या, बालक, और वृद्धों को पेरो से नहीं छूना चाहिए. ये सभी आदरणीय है. हमें इन्हें आदर-सम्मान देना चाहिए.
भोजन महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कार्य व उसके प्रति निष्ठा. पेट तो जानवर भी भर लेते हैं. अतः मानव बनो.
विद्या निरंतरता से अक्षुण्ण बनी रहती है. आलस्य से उसका लोप हो जाता है. धन यदि दूसरे के पास है तो अपना होने पर भी वह जरूरत पड़ने पर काम नहीं आता है. खेत में बिज न पड़े तो वह बंजर हो जाता है, उसी प्रकार कुशल सेनापति के अभाव में चतुरंगिणी सेना भी नष्ट हो जाती है.
गाय चाहे जो खा ले दूध ही देगी. इसी प्रकार विद्वान कैसा भी आचरण करे, वह निश्चित ही अनुकरणीय होगा, परन्तु यह तथ्य केवल समझदार ही समझ सकते है.
प्रतिदिन हमें कुछ न कुछ नया ग्रहण करना चाहिए, फिर चाहे वह एक श्लोक, उसका एक अंश अथवा एक शब्द मात्र ही क्यों न हो. एक-एक शब्द ही एक दिन विशाल समुद्र का रूप धारण कर लेता है.
मनुष्य रूप, यौवन और मदिरा में खोकर अपने आप को ही भूल जाता है, लेकिन जब उसे होश आता है तो नरक का द्वार उसके सामने होता है. अर्थात सूरा-सुंदरी का सुख मनुष्य को नरक के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकता. इससे बचना ही श्रेयस्कर है.
ईश्वर की महिमा की थाह कोई नहीं पा सकता. वह पल भर में राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है. धनी को निर्धन और निर्धन को धनी करना उसके लिए सहज है.
चिंतन सदैव अकेले में किया जाए, ताकि विचार भंग होने की संभावना न रहे . पढाई में दो, गायन में तीन, यात्रा में चार और खेती में पाँच व्यक्तियों का साथ उत्तम माना गया है. इसी प्रकार युद्ध में अधिक संख्या बल का महत्व बढ़ जाता है.
रूठी पत्नी, लुप्त संपत्ति और हाथ से निकली भूमि वापस मिल सकती है, लेकिन मनुष्य जीवन पुनः नहीं मिल सकता, अतः दान-धर्म कर हमें अपना जीवन सफल बनाना चाहिए.
दूसरों का सहारा लेने पर व्यक्ति का स्वयं का अस्तित्व गौण हो जाता है, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर चंद्रमा का प्रकाश अपनी चमक खो बैठता है. अतः महान वही है जो अपने बल पर खड़ा है.